२६ फरवरी, १९५८

 

           मधुर मां, आपने हमें कई बार सूर्यकी शक्तियोंके बारेमें बताया है, लेकिन चन्द्रमा या तारोंफे बारेमें कभी कुछ नहीं कहा?

 

 किस दृष्टिकोणसे? प्रतीकात्मक दृष्टिकोणसे?

 

              हां, मां ।

 

यह निर्भर है संप्रदायोंपर, यह निर्भर है कालपर, यह निर्भर है देशोंपर ... । आम तौरसे चन्द्रमा आध्यात्मिक शक्ति, आध्यात्मिक प्रगति, आध्यात्मिक अभीप्सासे संवर्धित होता है ।

 

        बढ़ता चन्द्रमा रूपांन्तरके लिये आध्यात्मिक अभीप्साका प्रतीक माना जाता था, और आध्यात्मिक परिपूर्णताका प्रतीक था पूनमका चांद । चांदनी सदा ही अन्तर्दर्शनों, काव्यमयी प्रेरणाओं और पार्थिव लोकसे परेके क्रिया- कलापके त्दिये बड़ी अनुकूल मानी जाती रही है । तरह-तरहके किस्से- कहानियां और किबदंतियां इन तारोंके बारेमें प्रचलित है -- वे तारे जो किसी दिव्य पुरुषके जन्मदिनपर उगते है... पर यह सब काफी हदतक साहित्यिक प्रतीक है ।

 

           यह विश्वास काफी व्यापक है कि मनुष्यके भाग्यपर तारोंका विशेष प्रभाव पड़ता है । यहांतक कि एक पूरा शास्त्र ही इसपर खड़ा हो गया है और आकाशमें तारोंकी विभिन्न स्थितियोंके आधारपर वह लगभग पूरी भविष्यवाणी कर देता है कि किसीके: जीवनमें क्या घटनेवाला है ।

 

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      जब हम चिन्तनकी प्रारंभिक अवस्थामें होते है तो हम यह अर्थ लगाते है कि तारोंका हमारे जीवनपर प्रभाव होता है... यह सोचना ज्यादा तर्क- संगत और ठीक लगता है कि यह मनुष्यके भाग्यकी एक स्वर-लिपि या अभिलेख है, क्योंकि, विश्व-ऐक्यमें सब कुछ एक साथ चलता- है, और यदि तुम्हें व्यक्ति और विश्वके आपसी सम्बन्धोंको पढ़ना आता हों तो तुम्हें वैश्व नक्षत्रोंकी स्थितिमें एक-न-एकके जीवनके'। प्रतीक-रूपसे दर्शाता हुआ ग्राफ़-सा मिलेगा ।

 

      अनुभव प्रमाणित करता है कि यह अंकन, जिसे फलित-ज्योतिषमें जन्म- कुण्डली कहते है, कोई निर्णायक चीज नहीं और न ही यह नियति अनिवार्य है, क्योंकि जब कोई योग करनेका और आध्यात्मिक विकास करने- का निश्चय करता है तो वह जन्मकुण्डलीके अटल विधानसे बच निकलता है । यह भौतिक स्तरपर वैश्व और वैयक्तिक जीवनके बीचके सम्बन्धका एक तरहका अंकन होगा और चेतनाके भौतिक स्तरमें चेतनाके उच्चतर स्तरके समावेशसे ये सम्बन्ध बदल मी सकते है ।

 

        इन सबको हम अर्ध-ज्ञानकी संज्ञा दे सकते है जो वैश्व सत्ता और वैयक्तिक सत्ताकी अन्योन्याश्रित कड़को पकड़नेकी एक प्रकारकी अविकसित चेष्टा है । और ये सारी चीजों भाषाओं-भर है जो कुछ कच्चे ज्ञानोंको निश्चित रूप देनेमें सहायक होती है । ये संपूर्ण नियम या निर्विवाद तथ्य नही है । वस्तुओंको यथातथ रूपमें समझनेके लिये ये प्रयास है, प्रयत्न है, पर हैं काफी अधूरे, कुछ लोंगोंके लिये इनमें आकर्षण हो सकता है, पर आरिवर ये वस्तुओंके सत्यके लिये स्थूल प्रवेश जैसे ही है ।

 

       यदि कोई मानसिक मानवीय ज्ञानकी पर्याप्त गहराईमें जाय तो वह अनु- भव करेगा कि बाह्य रूपसे प्राप्त मानसिक चेतनाका यह शान एक काफी जटिल भाषासे बढ़कर शायद ही कुछ हो । यह हमें एक-दूसरेको समझने- के किये तो समर्थ बनाती है, परन्तु वस्तुओंके सत्यके साथ इसका नाता दूरका ही होता है ।

 

       तादात्म्यके द्वारा एक सीधा मार्ग है जो बहुत अधिक प्रभावशाली है, कह सकते है कि वह तुम्हारी अंगुलीको, समूचे यंत्रको वस्तुओंकी कुंजीपर रख देता है, एक सीधी, सरल कुंजी जिसे अपने-आपको व्यक्त करनेके लिये किसी दुरूह ज्ञानकी आवश्यकता नहीं, ऐसा कुछ जो चेतना और संकल्प- की गतिविधियोंसे मेल रचाता है, जिसे अपने-आपको व्यक्त करनेके लिये सारी मानसिक: उलझनोंकी जरूरत नहीं पड़ती । तब अपन) सर्वांग संपूर्णता- के साय वैश्व यथार्थता प्रतीक बन जाती है जिसे उसके सार तत्त्वमें प्रत्यक्ष देखा जा सकता है ।

 

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